Wednesday, August 29, 2012

हर खुशी है लोगों के दामन में

हर खुशी है लोगों के दामन में ,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं .
दिन रात दौड़ती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं .
माँ की लोरी का एहसास तो है ,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं .
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके ,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं .
सारे नाम मोबाइल में हैं ,
पर दोस्ती के लए वक़्त नहीं .
गैरों की क्या बात करें ,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं .
आँखों में है नींद बड़ी ,
पर सोने का वक़्त नहीं .
दिल है घमों से भरा हुआ ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं .
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े ,
की थकने का भी वक़्त नहीं .
पराये एहसासों की क्या कद्र करें ,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं .
तू ही बता इ ज़िन्दगी ,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा ,
की हर पल मरने वालों को ,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं ………

Sunday, August 5, 2012

केवल राजनीति को गाली देना भी बेईमानी था


केवल राजनीति को गाली देना भी बेईमानी था ....
स्वाभिमानी जो होना था वो तेवर भी अभिमानी था ....
देश की संसद में भी यारो हर कोई गद्दार नहीं ...
और अन्ना के संग में बैठा हर कोई खुद्दार नहीं
टीम अन्ना का अंतर्मन भी अन्दर-२ हिला हुआ था ...
उनमे से कोई था जो यारो दस जनपथ पर मिला हुआ था ...
मनमोहन से चले थे अन्ना , मोदी जी पर अटक गए ....
उसी समय था मुझे लगा की अन्ना हजारे भटक गए ...


जिसको देखा जिसको पाया तुमने उसको चोर कहा
देश पर जीने मरने वाले को भी आदमखोर कहा ....
मीडिया हो या नेताजी हो चाहे जिसको डांट रहे थे
ईमानदारी प्रमाण पत्र बस केवल तुम्ही बाँट रहे थे
लोकपाल के लिए चले थे , लोकपाल भी भूल गए
काले धन की बात करी , फिर काला धन भी भूल गए
कौन दिशा में चला था रथ ये कौन दिशा में मोड़ लिया ???
खुद ही अनशन पर बैठे और खुद ही अनशन तोड़ लिया !!!!

ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आये है?

माँ मेरा मन बात ये समझ ना पाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे, टॉफियाँ खिलोने साथ मे...