Monday, March 28, 2011
Tuesday, March 15, 2011
क्यूँ ढूंढता उस ख्वाब को के कौन जाने किधर गया
क्यूँ ढूंढता उस ख्वाब को के कौन जाने किधर गया
जो पास है उसे साथ रख जो गुज़र गया सो गुज़र गया
अपना समझ जिसे खुश हुआ अहसास समझ कर भूल जा
बस नशा था थोड़ा प्यार का सुबह हुई तो उतर गया
...उस शख्स का भी क्या कसूर था जो पास होकर भी दूर था
ये तो ज़माने का दस्तूर है वो भी ज़माने संग बदल गया
न रखना दिल मे यादों को और ना आँखों को रोने देना
झोंका था बस एक हवा का आया और छु के निकल गया
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ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आये है?
माँ मेरा मन बात ये समझ ना पाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे, टॉफियाँ खिलोने साथ मे...
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है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर इस जगत मैं शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं. है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय जो धरा पर गिर ...
