Monday, April 4, 2011

फिर भी दिल को उसके लिए बेक...अरार क्यूँ करता हूँ

यंहा  उसका  मेरा  होना  मुमकिन  ही  नहीं,

फिर  भी  उससे  प्यार  क्यूँ  करता  हूँ,

जिन  राहों  पर  बन  नहीं  सकते  उसके पावों  के निसान,

उनपर  पलकें  बिछाये  उसका  इन्तेजार  क्यूँ  करता  हूँ,

उससे  मेरे  प्यार  का  किसी  से  इज़हार  ना कर  पाऊ,

फिर  बार  बार  खुद  से  ये  इकरार  क्यूँ  करता  हूँ,

और  उसे  भी   इल्म  ना होगा  मेरे  प्यार  का, 

फिर  भी  दिल  को  उसके लिए  बेक...अरार  क्यूँ  करता  हूँ.



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1 comment:

  1. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

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