Saturday, June 11, 2011

वो बचपन की यादें आज भी तन्हाई मे खोजता हूँ मै

वो बचपन की यादें आज भी तन्हाई मे खोजता हूँ मै

गुम हो जाता हूँ खुद मे जब उसके बारे मे सोचता हूँ मै

नए साल पे दोस्तों के साथ क्या पिकनिक खूब मनाई थी

छोटे परदे पे बड़ी फ़िल्मी देख के जलेबियाँ खूब खाई थी

क्रिकेट खेलने की तो हर पल होती हमारी तैयारी थी

कितने डंडे खाए पापा चाचा से उफ़ फिर भी क्या बेकरारी थी

दोस्तों की मण्डली निकलती थी साथ साथ हर होली मे

सुबह पिचकारियों मे रंग होता शाम गुलाल भरा होता झोली मे

दशहरे की तो बात जुदा थी वो मेला कितना प्यारा था

मंदिर के पीछे चोर सिपाही,लुका-छुपी उफ़ वो वक़्त हमारा था

दीवाली के पटाखे देखकर खुशियों मे पर लग जाते थे

कर के परेशान मोहल्ले मे सबको यंहा वंहा पटाखे बहुत जलाते थे

बीता बचपन गुज़रा जमाना अब यादों में खुश हो लेने दो

न जाने क्यूँ दिल है मेरा जी भर के आज मुझे रो लेने दो...

क्यूँ इन नज़रों को उसका इंतज़ार आज भी है

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