Sunday, June 12, 2011

अब वीकएंड पर भी नहाने लगा हूं !!!

कहाँ थी कमी, और कहाँ था वक़्त, तेरे आने से पहले
तेरे चक्कर में ऐ जान-ऐ-जाना, अब काम से वक़्त चुराने लगा हूं …



ये कैसा सितम काफिर तेरा मेरे मोबाइल पर
कही बुझ न जाये ये चिराग, अब चार्जर भी साथ लेकर आने लगा हूं



आनी है दिवाली और दिल सफाई शुरू हुयी
मेरे दिल की चली न जाये बत्ती, तुझे दिल में जलाने लगा हूं



तेरे बदन से जो खुशबु महके और शमा रंगीन हो
कुछ तो भला किया तुने सनम,अब डीओडोरेंट के पैसे बचाने लगा हूं



तेरी बातो से फुर्सत कहा और तेरी यादो से वक़्त
जी भर के देखू तुझे,इसलिए अब वीकएंड पर भी नहाने लगा हूं




अब न कहना के बहुत अमीरी है तेरे मिलने में
यहाँ लुट चुका हूं मैं , बस कड़ी कोशिश से गरीबी छुपाने लगा हु



मेरी कविता इतनी फर्जी भी होगी,सोचा न था
देख तेरी मोहब्बत में मैं,क्या क्या क्या क्रेप गाने लगा हूं 

5 comments:

ओढ़ के तिरंगा क्यों पापा आये है?

माँ मेरा मन बात ये समझ ना पाये है, ओढ़ के तिरंगे को क्यूँ पापा आये है? पहले पापा मुन्ना मुन्ना कहते आते थे, टॉफियाँ खिलोने साथ मे...